गुरुकृपा कैसे मिल सकती है ?

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गुरुकृपा क्या होती है ?

गुरु कृपा को समझने के लिए शिष्य बनना आवश्यक होता है बिना शिष्य बने गुरुकृपा को कैसे समझा जा सकता है | गुरु कृपा के ऊपर ना तो कोई प्रश्न किया जा सकता है और ना ही गुरु कृपा का कोई उत्तर हो सकता है गुरु कृपा एक ऐसी विषय वस्तु है जो की अनुभूति है बिना अनुभव के गुरु कृपा के बारे में नहीं जाना जा सकता , यदि समंदर के विषय में जानना चाहते हो तो केवल एक बूंद का अध्ययन करना पर्याप्त नहीं है एक बूंद पूरे समुद्र की जानकारी नहीं दे सकती , समुद्र में क्या है यह एक बूंद कैसे बता सकती है ? एक गिलास पानी की एक बूँद और एक समुद्र की एक बूंद एक जैसी होती है केवल उसकी संगति का अंतर होता है, समुद्र के जल की बूंद को गहरा अनुभव होता है उसकी गहराई में भी सहजता होती है गुरु कृपा को समझने के लिए गुरु शब्द को समझना अत्यंत आवश्यक है, गुरु कौन है गुरु संस्कृत का शब्द है जो अंग्रेजी के टीचर शब्द से बिल्कुल अलग है टीचर शब्द गुरु से प्रेरणा पा सकता है लेकिन गुरु टीचर से प्रेरणा पाए यह ठीक उसी तरह की बात होगी कि समंदर तालाब से प्रेरणा पाए | टीचर एक पश्चिमी अवधारणा है और गुरु एक भारतीय अवधारणा है टीचर का संबंध स्कूल या कॉलेज तक होता है और गुरु का संबंध ताउम्र होता है | जब तक आप इस पृथ्वी पर जीवित है तब तक गुरु के प्रति आपका दायित्व है | जीवन में अच्छे कार्य करके ही आप गुरु को प्रसन्न कर सकते हैं गुरु को प्रसन्न करने का और कोई उपाय नहीं है | गुरु को प्रसन्न केवल सेवा के माध्यम से ही किया जा सकता है बिना पानी की बूंद बने सागर को नहीं पहचाना जा सकता ठीक उसी तरह से बिना सेवा के गुरु की कृपा हासिल नहीं की जा सकती और ना ही गुरु को प्रसन्न किया जा सकता है गुरु कृपा से जीवन के प्रत्येक संकट का सामना किया जा सकता है गुरु की महिमा को लिखने के लिए शब्द कम पड़ सकते हैं गुरु की महिमा को लिखने के लिए भाषा की अपनी मर्यादा है, भाषा की अपनी कुछ सीमाएं हैं | एक शिष्य को गुरु के प्रति उच्चतम स्तर की विनम्रता रखनी चाहिए और गुरु के प्रति उच्चतम समर्पण का भाव रखना चाहिए | जो शिष्य गुरु के प्रति सम्मान नहीं रखता उसे गुरुकृपा की प्राप्ति नहीं होती | ईश्वरीय शक्तियां ऐसे व्यक्ति को शिष्य के रूप में स्वीकार नहीं करती और गुरु की कृपा प्राप्त नहीं होने की वजह से ऐसा व्यक्ति सदैव अज्ञान से ग्रसित रहता है | गुरु की महिमा को समझने के लिए किसी विद्वान ने कहा है यदि पूरे समुंदर की शाही बना ली जाए और और पूरी धरती के सभी पेड़ों को कलम बनाकर इस्तेमाल कर लिया जाए तो भी गुरु की महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता है दुनिया में ऐसी कोई शांति नहीं जो गुरु कृपा से हासिल नहीं की जा सकती | चिंता से मुक्त होने का एक ही उपाय है वह है स्वयं में विश्वास गुरु में विश्वास और ईश्वर में विश्वास !

गुरुकृपा कैसे मिल सकती है ?

जैसे कि गोस्वामी तुलसी दास ने कहा है एक भरोसो एक बल एक आस विश्वास अर्थात गुरु के ऊपर पूरा भरोसा होना चाहिए शिष्य को गुरु की क्षमता में पूरा विश्वास होना चाहिए | संदेह का कोई कारण नहीं होना चाहिए जिस तरह से गोस्वामी तुलसीदास जी को भगवान श्रीराम पर पूरा विश्वास था उसी प्रकार से शिष्य को भी गुरु के ऊपर पूरा विश्वास रख के श्रद्धा एवं समर्पण भाव से गुरु आज्ञा का पालन करना चाहिए | एक सतगुरु अपने शिष्य को कभी धोखा नहीं दे सकता शिष्य का कल्याण ही उसके जीवन का उद्देश्य होता है

एक भरोसो एक बल एक आस बिस्वास।
एक राम घनस्याम हित चातक तुलसीदास ॥गुरुकृपा कैसे मिल सकती है ?

गुरु कृपा प्राप्त करने के लिए कोई संक्षिप्त रास्ता नहीं है कोई शॉर्टकट नहीं एकमात्र सेवा ही गुरु कृपा प्राप्त करने का जरिया है | गुरु कृपा प्राप्त करने के लिए किसी गणितीय हिसाब की जरूरत नहीं है श्री गुरु की शरण लेने के पश्चात भी तुम्हारे दिमाग में रुपया पैसा घूम रहा है तो तुमपूरी तरह से गुरु को समर्पित नहीं हो और तुम्हारा कल्याण नहीं हो सकता | इस देश में ऐसे ऐसे शिष्य भी हुए हैं जिन्होंने गुरु की आज्ञा का पालन करने के लिए इस पृथ्वी पर जो कुछ हो सकता था वह सब किया वास्तव में सद्गुरु तुम्हें कोई गलत आज्ञा नहीं दे सकता तुम्हारा कल्याण ही उसके जीवन का उद्देश्य होता है इसलिए तुम्हें अपने गुरु के प्रति श्रद्धा भाव अवश्य रखना चाहिए गुरु की परीक्षा लेने का तुम्हारा कोई अधिकार नहीं बनता क्योंकि परीक्षा हमेशा वह लेता है जो ज्यादा योग्य होता है तुम शिक्षार्थी हो अभी तो तुमने पूरी शिक्षा ही हासिल नहीं की और तुम परीक्षा लेने की सोच रहे हो यही भटकाव तुम्हें अपने मार्ग विचलित कर देगा और तुम पुनः वही जाकर खड़े हो जाओगे जहां से तुमने यात्रा प्रारंभ की थी | इसका मतलब यह कतई नहीं है कि तुम्हें अपने गुरु का चुनाव करते समय सावधानी नहीं रखनी चाहिए गुरु का चुनाव सोच समझकर और गुण देखकर करो किंतु एक बार चयन करने के पश्चात तुम्हारी जिम्मेदारी बनती है कि श्रद्धा भावना समर्पण पूरी तरह से रहे, शंका समाधान नहीं दे सकती केवल मनोरोग पैदा कर सकती है | गुरु की शरण में आने से एवं सेवा भाव रखने से मस्तिष्क को शांति मिलती है जब शंका की बजाय समर्पण और लालच की बजाएं सेवा की भावना प्रबल होने लग जाए तभी गुरु कृपा की प्राप्ति होती है | जब लेने की बजाय देने का भाव प्रबल होने लगता है तभी गुरुकृपा का उदय होता है | जब खुद के प्रति दुनिया के प्रति एवं गुरुदेव के प्रति धन्यवाद का भाव पैदा होता है तभी गुरु कृपा का उदय होता है गुरुकृपा कोई आकस्मिक घटना नहीं है इसमें कई ईश्वरीय तत्व समाहित है |
गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरा: गुरु साक्षात परम ब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नमः बिना गुरु कृपा के ईश्वर की कृपा होना संभव नहीं है |भक्ति मार्ग के अलावा गुरु कृपा पाने का और कोई उपाय नहीं है|

            मनुष्य का गुरु कौन है ?

इंसान जब इस पृथ्वी पर जन्म लेता है तब अपनी माता से बहुत सारी बातें सीखता है इसलिए यह माना जा सकता है कि किसी भी व्यक्ति का सर्व प्रथम गुरु उसकी माता होती है जो व्यक्ति अपने माता-पिता का आदर नहीं करता है उसे गुरुकृपा कभी प्राप्त नहीं हो सकती | जिसे अपने उद्गम स्थल का ही बोध नहीं है वह आकाश की यात्रा कैसे कर सकता है ? जिस व्यक्ति में अपनी जननी एवं जन्मभूमि के प्रति कृतज्ञता का भाव नहीं है उसमें भला अपने गुरु के प्रति कृतज्ञता का भाव कैसे हो सकता है , ऐसी स्थिति में गुरु की कृपा प्राप्त करने के लिए अपने सर्वप्रथम गुरु माता की की सेवा करना और सम्मान करना प्रथम कर्तव्य है जिसे भुलाया नहीं जा सकता है | जो आपको सन्मार्ग पर ले जाए जो आपको कल्याण की तरफ ले जाए जो आपको आध्यात्मिक उन्नति की तरफ ले जाए, जो आपको ईश्वर से साक्षात्कार करवाएं जो आपके अज्ञान का नाश करें वही आपका गुरु है | , गुरु को परिभाषा में बांधना व्याकरण शास्त्र एवं भाषा शास्त्र के बस की बात नहीं है वास्तव में गुरु अनुभव है | एक गहरा अनुभव ! आप अपनी जिंदगी को दो भागों में बांट सकते हैं गुरु से मिलने से पहले का जीवन और और एक गुरु कृपा के पश्चात का जीवन , जिंदगी के प्रति आपके आयाम और दृष्टिकोण ही बदल जाएगा और वस्तुओं को तथा विषयों को अलग ढंग से देखने लग जाओगे | सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया इस वाक्य को समझने की अंतर्दृष्टि ही गुरु और शिष्य के मध्य अंतर को स्पष्ट करती है|
गुरुकृपा से जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

गुरु कृपा से व्यक्ति के जीवन से निराशा खत्म होती है जीवन का असली उद्देश्य पता चलता है व्यर्थ की परेशानियां संकट का समाधान होता है | जीवन की उलझन एवं परेशानियां अपने आप भाग जाती है, बड़े से बड़े संकट का सामना व्यक्ति आत्मविश्वास के साथ कर सकता है | गुरु मंत्र से शक्तिशाली मंत्र कोई मंत्र नहीं होता | जो गुरु ने तुम्हें संकट का समाधान करने के लिए दिया है वही गुरु मंत्र होता है | गुरु कृपा होने से व्यक्ति के ऊपर ग्रह नक्षत्रों का साया नहीं होता है | ग्रह नक्षत्रों के अशुभ दृष्टि से व्यक्ति का बचाव होता है दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल जाता है क्योंकि गुरु ही पत्थर को पारस में बदल सकता है | जब जब भगवान ने मनुष्य रूप में अवतार लिया तब तब भगवान ने भी गुरु की शरण ली इसलिए नहीं कि भगवान को गुरु की आवश्यकता थी बल्कि इसलिए कि वह मानव को गुरु का महत्व बताना चाहते थे इसलिए उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से एक उदाहरण पेश किया, ताकि तुम उनका अनुसरण कर सको और गुरु कृपा प्राप्त कर सको | चाहे तुम जीवन में कितने भी बड़े पद पर पहुंच जाओ और कितनी भी उपलब्धियां हासिल कर लो लेकिन यदि तुम्हारे ह्रदय में गुरु के प्रति सम्मान का भाव नहीं है तो तुम्हारी सारी उपलब्धियां कचरे के ढेर में फेंकने लायक है वह तुम्हारे अंदर आत्मसम्मान नहीं बल्कि आत्मग्लानि ही पैदा करेगी क्योंकि उन्होंने कुछ मानवीय आदर्शों की अवहेलना की है जो भारतीय संस्कृति का प्राण तत्व है |

असली गुरु की क्या पहचान है ?

जो तुम्हें सन्मार्ग का रास्ता दिखाएं जिससे मिलने के पश्चात या बात करने के पश्चात तुम्हारे प्रश्न उत्तर में बदल जाए, तुम्हारी शंकाएं श्रद्धा में बदल जाए और तुम्हारे मन के अंदर एक पवित्रता का भाव पैदा हो जाए तुम्हारे अंदर परोपकार करने की इच्छा पैदा हो जाए तो समझ लेना कि तुम असली गुरु से मिले हो | और ऐसा गुरु पाना सौभाग्य की बात है ऐसा गुरु हर किसी को नहीं मिलता यह पूर्व जन्म के पुण्य का प्रभाव होता है | आभूषण वस्त्रों पर मत जाना दिखावे पे मत जाना असली गुरु के जो गुण है वह अनुभूति की विषय वस्तु है |

गुरु दीक्षा मिलने के बाद क्या होता है ?

यदि गुरु ने आपका शिष्य के रूप में चयन किया है तो आप बड़े सौभाग्यशाली हैं क्योंकि कई हजारों लोगों में से यदि आपका गुणों के आधार पर चयन हुआ है तो वह प्रकृति एवं परमात्मा की इच्छा ही है| गुरु दीक्षा मिलने से आप में एक अलग ही ऊर्जा का संचार होने लगता है आप गहरे आत्मविश्वास से भर जाते हैं | नकारात्मक शक्तियां स्वयं आपसे दूर भागने लगती है जीवन सहज और सरल हो जाता है अहंकार का नाश होता है | परोपकार की भावना का उदय होता है और ईश्वरीय शक्तियां आप पर कृपा करती है| पाप कर्मों के बंधन कट जाते हैं आत्मा का परमात्मा से संबंध स्थापित होता है | संसार की समस्याएं छोटी लगने लगती है आपकी आध्यात्मिक यात्रा का प्रारंभ हो जाता है इस मार्ग में कई बाधाएं भी आती है किंतु गुरु के प्रति निष्ठा समर्पण ,सेवा से सभी परेशानियों का समाधान होता है|

गुरु मंत्र कब बोलना चाहिए ?

जब भी आप परेशानी या पीड़ा का अनुभव करें गुरु मंत्र का मन ही मन स्मरण करें गुरु मंत्र को गुप्त रखें वह आपके और गुरु के मध्य संबंध स्थापित करने का सेतु है एक पवित्र आध्यात्मिक बंधन है | एक दायित्व का बोध है जब भी आप ईश्वर स्मरण करें या पूजा पाठ करें तब गुरु मंत्र का भी मन ही मन ध्यान करें | गुरु मंत्र की पवित्रता बनाए रखें हंसी ठिठोली करने वाले लोगों के मध्य तथा गुरु के प्रति अपमान का भाव रखने वाले लोगों के मध्य गुरु मंत्र का उच्चारण ना करें | यदि ऐसी परिस्थिति में कभी आवश्यक ही हो तो मन ही मन गुरु मंत्र का स्मरण करें, नशाखोरी या बुरी संगत से दूर रहे तभी गुरु मंत्र फलदायक सिद्ध होगा | स्त्रियों के प्रति मातृ वृत भाव रखें | किसी और व्यक्ति का बुरा करने के लिए कभी गुरु मंत्र का उच्चारण ना करें | इसके अतिरिक्त गुरु मंत्र का उच्चारण करने के लिए बताए गए नियमों का पालन करें जीवन में निश्चित तौर से परिवर्तन आएगा एवं सकारात्मक रूप से आगे बढ़ेंगे |

गुरु मंत्र बोलने से क्या फायदा होता है ?

गुरु मंत्र आत्म संतुष्टि के लिए बोले जाते हैं फायदे का उससे किसी तरह से कोई सम्बन्ध नहीं है हालांकि मन की संतुष्टि से गुरु कृपा से कई प्रकार से अप्रत्यक्ष फायदा आपको हो सकता है किंतु गुरु मंत्र बोलने का प्राथमिक या पहला उद्देश्य फायदा नहीं होता | यह अलग बात है कि गुरु कृपा से आपके जीवन में आर्थिक समृद्धि का दौर आ जाए आप की गरीबी आपके बीते दिनों की बात हो जाए , आपका स्वास्थ्य अच्छा रहने लग जाए परिवार में परेशानियां खत्म हो जाए | गुरु मंत्र बोलने से व्यक्ति का अहंकार समाप्त होता है लेने की बजाय देने का भाव पैदा हो जाता है गुरु मंत्र बोलने से आपका ईश्वर पर विश्वास मजबूत होता है | ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है और जीवन समस्त प्रकार से सुखमय हो जाता है बाधाएं आती है किंतु उनका निराकरण हो जाता है |

गुरु मंत्र का जाप कैसे करना चाहिए ?

गुरु मंत्र का जाप 11 बार 21 बार 51 बार या 108 बार करना चाहिए क्योंकि यह संख्या शुभ मानी जाती है और उनसे गुरु कृपा प्राप्त होती है | गुरु मंत्र का जाप स्नानादि से निवृत्त होकर स्वस्थ एवं पवित्र मन से करना चाहिए |यदि आपके पास गुरुजी की तस्वीर उपलब्ध नहीं है तो मन में गुरु का सम्मान करें और गुरु नाम का जाप करें या गुरु द्वारा दिए गए मंत्र का जाप करें | यदि आपको गुरु मंत्र याद नहीं है तो आप गुरु कृपा प्राप्त करने के लिए ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः मंत्र का भी जाप कर सकते हैं | गुरु मंत्र जरूरी नहीं कि संस्कृत भाषा में ही हो गुरु द्वारा दिया गया वाक्य, गुरु के मुख से निकले हुए शब्द भी गुरु मंत्र हो सकते हैं| ॐ परमतत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम:मंत्र का ध्यान करके गुरु जी को मन ही मन स्मरण करें और गुरु सेवा और गुरु आज्ञा का संकल्प लें

सबसे बड़ा गुरु मंत्र क्या है ?

गुरु मंत्र की तुलना करना व्यर्थ है जो आपके गुरु ने आपको दे दिया वही आपका गुरु मंत्र है वही आपके लिए सबसे बड़ा मंत्र है गुरु मंत्र छोटा या बड़ा नहीं होता गुरु मंत्र केवल गुरु मंत्र होता है | आपके गुरु द्वारा दिए गए जिस मंत्र का स्मरण करने से आपके मन में शांति आ जाए वही सबसे बड़ा गुरु मंत्र होता है है |

गुरु मंत्र के नाम से किस मंत्र को जाना जाता है ?
जैसा कि पूर्व में ही बताया जा चुका है कि सभी गुरु का मंत्र एक जैसा नहीं होता है आपके गुरुद्वारा आपको दिया गया मंत्र ही आपका गुरु मंत्र होगा जो मंत्र आपके गुरुद्वारा दीक्षा के पश्चात आप को दिया जाता है वही मंत्र आपका गुरु मंत्र कहलाता है और गुरु मंत्र के नाम से जाना जाता है ओम गुरुवे नमः मंत्र का जाप गुरु मंत्र के रूप में किया जा सकता है | “ ॐ परमतत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम:” मंत्र का जाप भी गुरूजी के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए किया जा सकता है |

गुरु मंत्र को गुप्त क्यों रखना चाहिए ?

भक्ति आडंबर से मुक्त होती है | गुरु मंत्र को किसी परिचय या प्रसिद्धि की आवश्यकता नहीं है यह भारत की लाखों साल पुरानी परंपरा है | गुरु मंत्र गुरु एवं शिष्य के मध्य एक आध्यात्मिक सेतु का काम करता है गुरु मंत्र गुरु और शिष्य के बीच का संबंध है जो एक पवित्र आध्यात्मिक बंधन में गुरु और शिष्य को भक्ति के माध्यम से बांधता है, उसमें किसी प्रकार की औपचारिकता या महिमामंडन की आवश्यकता नहीं है | गुरु मंत्र समारोह पूर्वक नहीं बोला जाता गुरु मंत्र शब्दों के बोझ से मुक्त होते हैं क्योंकि गुरु मंत्र इस धारणा पर आधारित होते हैं की मौन प्रार्थनाएं ईश्वर तक जल्दी पहुंचती है क्योंकि वह शब्दों के बोझ से मुक्त होती हैं | गुरु मंत्र शिष्य की योग्यता को एवं श्रद्धा को देखते हुए गुरुद्वारा दिया जाता है यदि उसे किसी अन्य व्यक्ति को बताया जाता है तो उसमें वह योग्यता और वह श्रद्धा नहीं होने के कारण वचन भंग होने की धारणा बनती है एवं शिष्य की गुरु के प्रति महिमा कम होती है | गुरु मंत्र व्यक्तिगत स्तर पर प्रत्येक शिष्य साधक की स्थिति को देखते हुए प्रदान किया जाता है इसलिए उसको किसी और के साथ साझा नहीं करना चाहिए | कोई और व्यक्ति यदि किसी दूसरे का चुराया हुआ गुरु मंत्र इस्तेमाल करता है तो उसे बेईमानी का प्रयोग करने के कारण कोई लाभ प्राप्त नहीं होता | गुरु मंत्र एवं गुरु में जितनी आपकी अधिक श्रद्धा होगी उतना ही मंत्र सिद्ध होता है और आपको ज्यादा फायदा महसूस होगा |

गुरु मंत्र की शक्ति क्या है?

गुरु मंत्र आपकी संकट से रक्षा करता है | आत्मविश्वास प्रदान करता है आध्यात्मिक मार्ग पर आप को बलवान बनाता है | गुरु मंत्र आपके पाप कर्मों को नष्ट करके सद्गुणों का विकास करता है | अच्छाई की भावना का विकास करके बुराई समाप्त करता है मन में शांति प्रदान करता है | गुरु मंत्र बोलने से ग्रह नक्षत्रों का अशुभ प्रभाव समाप्त होता है सभी प्रकार के संकट का नाश होता है |

गुरु कौन बन सकता है ?

जो आपके अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाकर ज्ञान रूपी प्रकाश का उदय कर सके, जो सदाचारी हो , जो मानव कल्याण का मार्ग पहचानता हो वह गुरु हो सकता है | गुरु शिष्य परंपरा में ऐसे धर्मात्मा पुरुष गुरु बनने हेतु सर्वथा उपयुक्त है जो आप में सब गुणों का विकास कर सके वह गुरु है | गुरु ज्ञान में श्रेष्ठ होता है आयु में नहीं | ॐ गुरुवे नमः ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

 

 

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